करत करत अभ्यास के जड़मत होत सुजान |
रसरी आवत जात ते सील पर परे निशान ||
जिस प्रकार लगातार रस्सी के आने जाने से पत्थर पर निशान बन जाता है , उसी प्रकार निरंतर अभ्यास से बुद्धहीन भी बुद्धिमान बन जाता है. दोस्तों निरंतरता जिसे हम English में Consistency कहते हैं , यह किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए बहुत ही जरुरी है. बिना इसके आप किसी भी मुकाम को हाशिल नहीं कर सकते हैं.
महाभारत में हमने एकलव्य के बारे में पढ़ा है कि कैसे वह निरंतर अभ्यास करते हुए बाण चलाना सीखा. उसने तो मिट्टी के बने हुए मूर्ति को अपना गुरु बनाया और निरंतर अभ्यास किया और परिणामस्वरूप उसने इस तरह से बाण चलाया की कुत्ते का भौंकना बंद हो गया और वह भी बिना किसी प्रकार का नुकसान पहुचाये।
निरंतर अभ्यास से ही Sachin Tendulkar , PT Usha, MS Dhoni, Virat Kohli जैसे Athletes अथवा Cricketers बड़े बड़े Record बना पाए और सफलता हाशिल की. Usain Bolt के बारे में भी आपने पढ़ा ही होगा , यह इंसान 100 mitter की दौड़ को जितने के लिए 4 साल लगातर / निरंतर मेहनत किया, तब जाकर कंही सफलता पायी.
दोस्तों ऐसी ही कई अनगिनत कहानियां है जो हमे हमेशा प्रेरणा देती है कि – निरतंर मेहनत , अभ्यास , पढ़ाई करते रहो , एक न एक दिन जरूर सक्सेसफुल बनोगे. ऐसी ही एक एक कहानी आज मैं आप लोगों से share कर रहा हूँ , उम्मीद करता हूँ कि आप लोगों को यह कहानी पसंद आएगी.
दोस्तों एक विद्यालय में कई बच्चे स्कूली शिक्षा ले रहे थे , उन्ही में से एक बच्चा था जिसका नाम वरदराज था. वरदराज पढ़ने – लिखने में बहुत ही कमजोर था. अन्य बच्चों की तुलना में वरदराज काफी ज्यादा बुद्धिहीन था इसलिए बाकी के बालक उसका हमेशा मजाक उड़ाते रहते थें. कोई उसे मंदबुद्धि तो कोई उसे मुर्ख कहता.
उसके साथ पढ़नेवाले सभी बच्चे आगे की कक्षा में पहुंच गए लेकिन वरदराज कई सालों से एक हे कक्षा में पढ़ रहा था. अब तो नौबत यह आ गयी की शिक्षक भी उससे नाराज रहते थे। उसे कोई भी शिक्षक पसंद नहीं करता था. इसी नराजकी के चलते एक दिन उसे विद्यालय से निकाल दिया गया.
भारी मन से उदास वरदराज अपना बोरिया बिस्तरा उठाकर अपने घर के लिए निकल पड़ा. दोपहर का समय हो चूका था , चिलचिलाती धुप – वरदराज को प्यास लगती है.
वह दूर दिख रहे एक कुंए के पास जाता है। जब वह कुएं के पास पहुँचता है तो देखता है की कुछ औरते रस्सी के सहारे बाल्टी से पानी निकाल रही थी. वरदराज जब कुएँ के पास पहुँचा तो उसने देखा की रेशम की रस्सी के बार – बार घिसने से कुएँ के पत्थर में निशान पड़ गए हैं.
यह सब देख वरदराज को बहुत ही आश्चर्य हुआ ,और उसने बड़े ध्यान से उस रस्सी और पत्थर को देखते रहा और काफी सोच में पड़ गया. उसने मन ही मन सोचा की जब निरंतर रस्सी के घर्षण से पत्थर भी घिस सकता है तो निरंतर अभ्यास से मैं बुद्धिमान क्यों नहीं बन सकता।
वह तुरतं अपने विद्यालय लौट पड़ा. विद्यालय पहुंचकर अपने शिक्षक से अपनी पढ़ाई करने की तीव्र इच्छा जाहिर की. इस बार वरदराज के चेहरे पर अनोखी ख़ुशी , चमक थी , उसके अंदर का आत्मबल मजबूत दिख रहा था.
गुरूजी समझ गए और उन्होंने वरदराज को पढ़ने का एक और मौका दिया और परिणाम स्वरूप अगली परीक्षा में वरदराज ने कक्षा में सबसे अव्वल नंबर लाया.
दोस्तों कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती है। ……….
आगे चलकर यही बालक वरदराज संस्कृत के बहुत बड़े विद्यवान बने और कई ग्रंथों की रचना की. उनके द्वारा लिखित ग्रन्थ मध्यसिद्धान्तकौमुदी, लघुसिद्धान्तकौमुदी, सारकौमुदी हैं.
दोस्तों यह कहानी बताने के सिर्फ इतना मतलब है कि – आप भी अपने आप को कमजोर न समझें। निरंतर अभ्यास , निरंतर Practice , करते रहिये. Success आज नहीं तो कल जरूर मिलेगी.